वो फिर कब आ पायेगा
जाने की जल्दी में
भूल गया है अपना सामान
ये उसके मोज़े ,जूते
पतलून ,कमीज
बनियान ...
और बहुत सारे तरह तरह के उसके वेश
बाँहों में भर लेती हूँ उन्हें
उसकी देह समझ कर
बेजान कपड़ों की सरसराहट से
चोंक
जानती हूँ
वो नहीं है
चला गया है
छोडकर मुझे
अपने सामान की तरह
शायद
लेने आये
अपना सामान
तो मुझे भी ले जाए साथ
ये सोच
सज संवर
बंधे सामान की तरह
तैयार हूँ
बस .....
बहुत सुंदर भाव और बहुत अच्छी कविता...
ReplyDeletehttp://veenakesur.blogspot.com/
बहुत सुन्दर भाव।
ReplyDeleteगुलज़ार साहब का भी एक गीत है, 'मेरा सामान लौटा दो', आपने तो इसमें नया ही आयाम दे दिया ..
ReplyDeleteविरह की वेदना में निर्जीव वस्तुए भी सजीव हो उठती है.. बहुत ही सुन्दर चित्रण किया है सर आपने..
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