Search This Blog

Tuesday, September 28, 2010

जिस कोने था वो कल
उस कोने को खाली कर
वह जला दी गयी है अगरबत्ती
जो छोड़ रही है रह रह महक
जैसे वो देता था खुस्ब्बू
साँस साँस धुंवा छोडती अगरबत्ती
भी बुझ गयी है
कोना अँधेरे से घर गया है
कल सबह की पहली किरण
शायद ये कोना फिर हो जाये आबाद
मगर मैं ये जानता हूँ वो अब नहीं आयेगा 

4 comments:

  1. gahre bhav liye abhivykti jagah bana le gayee....

    ReplyDelete
  2. मार्मिक अभिव्यक्ति। मन तो जाने वालों को हमेशा हर कण मे ढूँढ्ता है। शुभकामनाये

    ReplyDelete
  3. bahut khoobsurt
    mahnat safal hui
    yu hi likhate raho tumhe padhana acha lagata hai.

    ReplyDelete
  4. बड़ी सुन्दर पंक्तियाँ।

    ReplyDelete