बहुत बार उसे गोद में खिलाया है
जब वो रोया तो उसे हंसाया
बच्चा था बच्चे की तरह पला पोसा
दिन तितली की तरह उड़ते चले गए
उसके साथ मेरे सपने बढ़ते चले गए
पता ही नहीं चला कब वो बच्चे से बड़ा हो गया इतना
पूछने लगा हिसाब मेरे प्यार का
जताने लगा मुझे मेरा धर्म
बताने लगा अपना धर्म
लला-- इतनी जल्दी पराया हुआ !!!!
apekshae ye ehsaas de detee hai.....
ReplyDeletesunder abhivykti........
भावनात्मक अभिव्यक्ति।
ReplyDeleteइस " लला " का जवाब नहीं ।
ReplyDeleteनगर मोहल्लो की गलियों में
ReplyDeleteरोता है चिल्लाता है,
छोटे बड़े सभी के आगे
लला हाथ फैलाता है
बीता इसी में बचपन है..............
अच्छी कविता है
sundar rachna !
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