seep ka sapna
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Friday, October 22, 2010
वो शाम
बहुत देर से
लहरों पर उछलती
कभी पानी उपर , कभी पानी में
होती गयी मेरी आँखें
दूर पार कही
शायद
होगी वह भी
आँखें
तभी तो
मंत्रमुग्ध हुई
जाती है
वो शाम
रात होने से पहिले
1 comment:
प्रवीण पाण्डेय
22 October, 2010
बहुत सुन्दर भाव पिरो दिये हैं शब्दों में।
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बहुत सुन्दर भाव पिरो दिये हैं शब्दों में।
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