धीमी आंच में सेंकता रहा है
समय पकाता गया है
उन बात्तों को जो किसी ने नहीं सिखाई
समय की इस हांडी ने
घटनाओ दुर्घटनाओ
दोस्तों ,घर परिवार
नाते रिश्तों की उष्मा से
पका कर जो कुछ दिया है
वही मेरे काम आया है
मेरे व्यवहार को इस हांडी ने
हमेशा रास्ता दिखाया है
अब भी
सिक रही है समय की हांडी
धीमी धीमी आंच से ........
अब भी पका रहा है
समय ...
समय सबको पका डालता है।
ReplyDeleteअच्छी कविता... बधाई।
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