पेड़ और तुम
बढ़ता जाता है जंगल
बढती जाती शाखाएं
पास आते जाते पत्ते
सूरज चाँद आकाश बरसात को
रोकता जाता है ये बढ़ता पेड़
कई पंछियों का शरन्य स्थल
कई पंछियों के वध स्थल में बदलता जाता है
पेड़ अब चाहकर भी रोक नहीं पाता है अनाचार
जो उसकी घनी होती छाया में होता है
बड़ा पेड़ अपने को तटस्थ बताता हुआ
धीरे धीरे
अनाचार का अड्डा बनता जाता है
अब रोज किसी अनाचार को देखे बिना
वो कहा हरा हो पाता है
इसीलिए तो
कुशल माली
गाहे बगाहे
पेड़ की शाखों को काटता जाता है
ताकि पेड़ पेड़ ही बना रहे
जंगल में न बदले .......
अब रोज किसी अनाचार को देखे बिना
ReplyDeleteवो कहा हरा हो पाता है
बिलकुल सही कहा। अब कुशल मालियों की तादाद भी तो कम होरही है।ाच्छी लगी रचना। आभार।
हमको भी अपना माली बनना है।
ReplyDeleteachchhe prateek hai.
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