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Wednesday, October 27, 2010

पेड़ और तुम

पेड़ और तुम


घने होते जाते इस पेड़
बढ़ता जाता है जंगल
बढती जाती  शाखाएं
पास आते जाते पत्ते
सूरज चाँद आकाश बरसात को
रोकता जाता है ये बढ़ता  पेड़
कई पंछियों का शरन्य स्थल
कई पंछियों के वध स्थल में बदलता जाता है
पेड़  अब चाहकर भी रोक नहीं पाता है अनाचार
जो उसकी घनी होती छाया में होता है
बड़ा पेड़ अपने को तटस्थ बताता हुआ
धीरे धीरे
अनाचार का अड्डा बनता जाता है
अब रोज  किसी अनाचार को देखे बिना
वो  कहा हरा हो पाता है
इसीलिए तो
कुशल माली
गाहे  बगाहे
पेड़ की शाखों को काटता जाता है
ताकि पेड़ पेड़ ही बना रहे
जंगल में न  बदले .......

3 comments:

  1. अब रोज किसी अनाचार को देखे बिना
    वो कहा हरा हो पाता है
    बिलकुल सही कहा। अब कुशल मालियों की तादाद भी तो कम होरही है।ाच्छी लगी रचना। आभार।

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  2. हमको भी अपना माली बनना है।

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