सागर की गूंज की तरह
मन में उठता है शोर
निर्जन स्थानों में अकेले
बाते करता हूँ
कभी दौड़ता हूँ
अपनी ही परछाई को पकड़ने
कभी चुप चाप..
सुनता हूँ खुदको
समय अब चोंकता नहीं मुझे देख
वह भी खिलखिलाता है मेरे साथ
होता उदास
चुप चाप
कोई हो गया मुझमें
और मैं न जाने कब रह गया सिर्फ
साया उसका
समय ने मुझसे पहिले जाना ये सब ....
तभी शायद वो मेरी हर हरक़त
मेरे साथ है !
मौन की गहराई लिये पंक्तियाँ।
ReplyDelete