जो बीत गए
वो बीतने को नहीं आये थे मेरे जीवन
वो गए मुझे झंझोड़
मुझमे कुछ जोड़ कुछ तोड़
कुछ ले मेरा , कुछ दे अपना
संवार कर मेरा रास्ता
इंगित कर गए
मोक्ष
जो मिले या न मिले
मेरे हर क्षण अब आनंद है
नदी सा समर्पण है
अब बीतता कुछ नहीं
अविरल बहता है
मेरा समय ......
(आदरणीय जेठमल जी सुप्रसिद्ध साहित्यकार ,कहानीकार व् अनुवादक को सादर..दिनांक २३ दिसम्बर २०१० सांय ७ ;२४ )
कुछ प्रभाव अंतहीन से अंकित हो जाते हैं ....
ReplyDeleteअविरल बहते समय की निष्ठा को प्रणाम!
सार्थक रचना!
मोक्ष
ReplyDeleteजो मिले या न मिले
मेरे हर क्षण अब आनंद है
नदी सा समर्पण है
अब बीतता कुछ नहीं
अविरल बहता है
मेरा समय ......
अति सुन्दर !