फिसलती रेत को देख रहे है
जो कुछ हाथ मैं है उसे
हाथ से जाते हुए देख रहे है
जिसे आते हुए देखा था
उसे जाते हुए देखना
एक सिहरन छोड़ जाता है
उसके होने से जो कुछ संभव हुआ
उसके नहीं होने से जो कुछ अब नहीं होगा
वो बहुत कुछ सिखा गया है
उसका नहीं होना छोड़ गया है ..धोड़ा अवसाद ,धोड़ी निराशा
और उसके होने से जागी है .. उमंगें , आँखों मैं चमके है नए सपने
, आँखों मैं चमके है नए सपने
संस्कार दिया है ऐसा उसने
-- उसका जाना लगता है स्वाभाविक
एक प्रक्रिया सा ..सामान्य सी एक प्रक्रिया सा
यूँ आता जाता समय
.हमें तरो ताजा रखता है ....
नये वर्ष की बधाई
ReplyDeleteआते जाते समय को देखते रहना सम्मोहक है।
ReplyDeleteसुन्दर और सत्याभिव्यक्ति...!!
ReplyDeleteआपको नव वर्ष की सादर शुभकामनाएं.
bahut achchhi kavita!
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