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Thursday, January 13, 2011

जाने कब तक ?

बहुत बातें करने की इच्छा  मन मैं होती है
 शुरू सम्बन्ध के पलों मैं
दो अजनबी चाहते है
 हर पल साथ रहना
कहना अपने मन का
सुनने उसके मन का
जरा सी देर भी अगर दूर हो जाये  तो
दोन बैचैन हो जाते  है
बार बार एक दूजे  का ध्यान आता है
प्रेम का रास्ता विकट है
हर पल व्याकुल है
देह नहीं एक दूजे की  छाया है
जिसे ओढ़ दोनों एक दूजे को तलाशते है

हाँ पता है ..ये सब है
रहस्यों की डोरी खुले तब तलक !
प्रेम पथिक-- उतावला होता है
फिर ..बैठ सुस्ताता है
 देर तक ..... जाने कब तक ?

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