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Friday, January 14, 2011

तेरी याद ....

कुछ पदचापें
आहटें
निशब्द अहसास
वो अँधेरा
फिर रहा  मेरे जीवन
वही उजाला
वो बेमतलब हसना
कर गया मुझे रुआंसा
मगर जैसे खिलता है
जाड़े की सुबह पात
भीगा भीगा
मैं भी खिली हूँ
प्रिय
तेरी याद ....

3 comments:

  1. सार्थक और बेहद खूबसूरत,प्रभावी,उम्दा रचना है..शुभकामनाएं।

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  2. कमाल की प्रस्तुति ....जितनी तारीफ़ करो मुझे तो कम ही लगेगी

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  3. पदचापें यादों की, सुनाई नहीं देती, बस सामने आ खड़ी हो जाती हैं।

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