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Wednesday, January 26, 2011

मिले शायद कभी ?

कई देर बाद लगता है
कुछ दूरी तक किसी के साथ चलते हुए
हम कितना जुड़ गए थे उससे  
आज जब  चल रहे है अकेले तब
याद आया है वो वक़्त
जब हम चले  थे साथ 
लिए हाथ मैं  हाथ 
बनाये थे हमने कई  नए रास्ते
कितने ही  बोये थे बीज  ऐसे
जो  आज सजाते है दुनिया को फूल बन
फिर हमने क्यों छोड़ा  साथ  ?
चलते हुए इस रास्ते
अपनी बनायीं बस्तियों मैं
अपने लगाये फूलो की सुगंध मैं झूमते
पूछता रहा  मैं
और जवाब कभी मिला नही ..
शायद मिले ....मिले शायद कभी ?














1 comment:

  1. आज जब चल रहे है अकेले तब
    याद आया है वो वक़्त
    जब हम चले थे साथ
    लिए हाथ मैं हाथ
    बनाये थे हमने कई नए रास्ते

    और एक वक़्त के बाद सब ...अपने अपने रास्ते पर चल पड़ते हैं ...यही वास्तविकता है ..शुक्रिया

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