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Friday, January 28, 2011

अब जाता हूँ भीतर

बहुत देर खोज करने के बाद
और जो सोचा था उसे पाकर
कुछ देर ही संतुष्ट रह सका
फिर खोजने निकल  पड़ा
और और पाता गया
और और खोजता रहा
अब जान गया हूँ
कि संतोष नहीं मिलेगा बाहिर
बाहिर की खोज से नहीं निकलेगा हल
अब जाता हूँ भीतर
मेरा भीतर
पाता हूँ
है अब भी बाहिर
तुममे .....हाँ तुम ही हो
शायद... तुम ही हो
मेरा भीतर .....













2 comments:

  1. यह विश्वास ही प्रेम का प्रारम्भ है।

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