कभी सब खुश नहीं हो पाते
बड़ी मित्र मंडली मैं
ऐसा होने लगता है
कि जब कोई दो मिल बैठते है
तो अपने मित्रों की ही करते है बुराइयाँ
उनसे उपजी शिकायतों से
धीरे धीरे मंडली मैं बन जाते है खेमे
और जो प्रबल विरोधी मित्र होते है
वे दिखा दिखा सबको
आपस मैं मिलते है ठहाके लगा लगा
ये क्या हाल हुआ?
क्यों नहीं
मित्र रह सकते ....बिंदास ,सहज, भरोसेमंद
क्या जरुरत हो गयी
मित्रो मैं भी राजनीती की??
उत्तर मैने खोजा ...
और हर बार मित्रों की राजनीती का
शिकार हो ...अब अनुतरित हूँ ...
हूँ ...बिना किसी प्रश्न के
लगाता ठहाके उनके साथ ...
बड़ी मित्र मंडली मैं
ऐसा होने लगता है
कि जब कोई दो मिल बैठते है
तो अपने मित्रों की ही करते है बुराइयाँ
उनसे उपजी शिकायतों से
धीरे धीरे मंडली मैं बन जाते है खेमे
और जो प्रबल विरोधी मित्र होते है
वे दिखा दिखा सबको
आपस मैं मिलते है ठहाके लगा लगा
ये क्या हाल हुआ?
क्यों नहीं
मित्र रह सकते ....बिंदास ,सहज, भरोसेमंद
क्या जरुरत हो गयी
मित्रो मैं भी राजनीती की??
उत्तर मैने खोजा ...
और हर बार मित्रों की राजनीती का
शिकार हो ...अब अनुतरित हूँ ...
हूँ ...बिना किसी प्रश्न के
लगाता ठहाके उनके साथ ...
क्या जरूरत हो गयी मित्रों मे राजनिती की--- बहुत वज़िब सवाल लेकिन उत्तर कौन दे। सब मश्गूल हैं एक दूसरे को उखाडने के लिये। अच्छा सन्देश देती रचना। बधाई।
ReplyDeleteबात तक ही रहे यह राजनीति, मन तक न पहुँचे।
ReplyDeleteआपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
ReplyDeleteप्रस्तुति भी कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
कल (10/2/2011) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
अवगत कराइयेगा और हमारा हौसला बढाइयेगा।
http://charchamanch.uchcharan.com
ati uttam
ReplyDelete