बहुत खोखला हुआ जाता है
जो बाहिर हरा भरा
अपने आप मैं पूरा
दिखता है .
भीतर अपने दुःख की नमी से
ढह रहा है रोज
धीरे धीरे
शायद खतम हो जाये
वह ...........एक दिन
मगर उसका बाहिर !
जो दे गया है दुनिया को सुख
वह उसकी अस्मिता को
हरा रखेगा .......
रहती दुनिया तक ..
जो बाहिर हरा भरा
अपने आप मैं पूरा
दिखता है .
भीतर अपने दुःख की नमी से
ढह रहा है रोज
धीरे धीरे
शायद खतम हो जाये
वह ...........एक दिन
मगर उसका बाहिर !
जो दे गया है दुनिया को सुख
वह उसकी अस्मिता को
हरा रखेगा .......
रहती दुनिया तक ..
कोमल भावों से सजी ..
ReplyDelete..........दिल को छू लेने वाली प्रस्तुती
बाहर का रूप अन्दर कितना धूमिल है, क्या मालूम?
ReplyDeleteजैसे दीमक लगा पौधा बहार से हरा भरा दीखता है और भीतर जड़ें खोखली ...
ReplyDeleteशब्दों ने दृश्य को साकार कर दिया है जैसे !
बहुत सुंदर ...सार्थक ...सकारात्मक प्रस्तुति....
ReplyDeleteमगर उसका बाहिर !
ReplyDeleteजो दे गया है दुनिया को सुख
वह उसकी अस्मिता को
हरा रखेगा .......
रहती दुनिया तक ..
...सार्थक प्रस्तुति
सुन्दर भाव और सुन्दर चिंतन....
ReplyDeletenice and meaningful lines ...
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