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Tuesday, February 15, 2011

रहती दुनिया तक ..

बहुत खोखला हुआ जाता है
जो बाहिर हरा भरा
अपने आप मैं पूरा
दिखता है .
भीतर अपने दुःख की नमी से
ढह रहा है रोज
धीरे धीरे
शायद खतम हो जाये
वह ...........एक दिन
मगर उसका बाहिर !
जो दे गया है दुनिया को सुख
वह उसकी अस्मिता को
हरा रखेगा .......
रहती दुनिया तक ..









7 comments:

  1. कोमल भावों से सजी ..
    ..........दिल को छू लेने वाली प्रस्तुती

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  2. बाहर का रूप अन्दर कितना धूमिल है, क्या मालूम?

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  3. जैसे दीमक लगा पौधा बहार से हरा भरा दीखता है और भीतर जड़ें खोखली ...
    शब्दों ने दृश्य को साकार कर दिया है जैसे !

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  4. बहुत सुंदर ...सार्थक ...सकारात्मक प्रस्तुति....

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  5. मगर उसका बाहिर !
    जो दे गया है दुनिया को सुख
    वह उसकी अस्मिता को
    हरा रखेगा .......
    रहती दुनिया तक ..
    ...सार्थक प्रस्तुति

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  6. सुन्दर भाव और सुन्दर चिंतन....

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