अँधेरे बढ़ते जाते है
रोशनी हतप्रभ है
कैसे बचे
इस आतंक से
मौनं है
आतंकित नहीं
कायर भी नहीं
सोच में डूबी है
कहा से आया ..इतना अन्धेरा !!
कैसे करे उपाय कि फिर कभी नहीं बढे --
ये अँधेरा
तब तलक धिक्कारे
छोटे छोटे ...धब्बे ....कुछ बड़े गुच्छे...रौशनी के किरचे
और अन्धेरा घना होता जाये
जैसे अंत समय जले और तेज ---लो दिए की
बुझने के लिए ...अँधेरा बढ़ता जाए
रोशनी के लिए .!!!!
जैसे अंत समय जले और तेज
ReplyDeleteलो दिए की
बुझने के लिए
अँधेरा बढ़ता जाए
रोशनी के लिए .
बेहतरीन शब्द संरचना बधाई