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Thursday, February 17, 2011

रोशनी के लिए

अँधेरे बढ़ते जाते है 
रोशनी हतप्रभ है 
कैसे बचे 
इस आतंक से 
मौनं है 
आतंकित नहीं 
कायर भी नहीं 
सोच में डूबी है 
कहा से आया ..इतना अन्धेरा !!
कैसे करे  उपाय कि फिर कभी नहीं बढे --
ये अँधेरा  
तब तलक धिक्कारे 
छोटे छोटे ...धब्बे ....कुछ बड़े गुच्छे...रौशनी के किरचे 
और अन्धेरा घना होता जाये 
जैसे अंत समय जले और तेज ---लो दिए की 
बुझने के लिए ...अँधेरा बढ़ता जाए 
रोशनी के  लिए .!!!!

1 comment:

  1. जैसे अंत समय जले और तेज
    लो दिए की
    बुझने के लिए
    अँधेरा बढ़ता जाए
    रोशनी के लिए .
    बेहतरीन शब्द संरचना बधाई

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