जैसे चलता है आरा
हरे पेड़ के तने पर
मुझे काटती है तेरी याद
जानता हूँ मेने कभी ये आरा
चलाया था तुझ पर
मेरे प्यार
अब क्या करू ?
समय वो में लौटा नहीं सकता
तुम भी वापिस आ नहीं सकते
मगर में हूँ यहाँ खुद में खुद को
देखता हुआ
कटते हुए
कई आरों से ....
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