रेत की मानिंद खाली कर जाती है कोई सूचना
एक पल में वीराना कर जाती है
भौचक हुए समय में
फिर दुःख के लबादे में दुबके शरीर को
धड़कन सुनने का समय भी नहीं मिलता
उहा-पोह में फंसे और हाँफते---
----बिलखने को तयार
इस समय में भी
मेरी मुठियाँ-
तुम्हारी याद को कस कर पकडे रहती है
मेरी हर धड़कन
तुम्हे खुद का हाल बताने को बेताब रहती है
जानता हूँ तुम नहीं सुनती हो न सुनोगी ...
मगर मुझे पता है
शायद
अब फिर में कभी तुम्हे याद न कर पाउँगा
ये समय मुझ पर छोड़ जाएगा निशाँ ऐसा
जिसकी छाया में दुबका मैं
फिर कभी ..तुमसे क्या
खुद से भी न मिल पाउँगा .......
Thanks for this blog posst
ReplyDelete