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Friday, February 25, 2011

क्युकी मेरा प्यार देह नहीं

 पथरीले रास्तों ने ही बताया है
नुकीले चुभते  हुए छोटे पत्थरों  ने
मुलायम पैरों को चलना सीखाया है
दुःख की धुन पर नाचते हुए ही
हंसी ने दस्तक दी है मेरी देहलीज़ पर
प्यार हुआ है उसको देखे बिना
झूमा हूँ नाचा हूँ गले में उसके हाथ डाले
घूमा हूँ कई निर्जन होते जंगलों में
मैं कभी किसी को खोता नहीं
क्युकी मेरा प्यार देह नहीं
एक भाव है उसकी सुगंध से महकता हुआ






4 comments:

  1. क्युकी मेरा प्यार देह नहीं
    एक भाव है उसकी सुगंध से महकता हुआ

    बस यहीं प्यार सार्थक हो गया…………बेहद खूबसूरत अभिव्यक्ति।

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  2. क्युकी मेरा प्यार देह नहीं
    एक भाव है उसकी सुगंध से महकता हुआ
    बिलकुल सही कहा। प्यार तो ऐसा ही होना चाहिये। शुभकामनायें।

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  3. बेहद खूबसूरत अभिव्यक्ति।

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  4. very nice one, so much depth

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