जो बिछुड़ी वो मिली नहीं फिर कभी
बचपन में जिसके साथ घर बनाये
जिसकी डांट सुनी
उसने जैसा कहा
वैसा किया
मगर वो बचपन के साथ ही गायब हुई
सुनते है वो देल्ली में है
दो बच्चों की माँ हो गयी है
पति बड़े अफसर है
बहुत खुश है
सुनकर में भी खुश हूँ
न तो वो न मैं कभी मिलने की कोशिस करते हैं
क्युकी हम शायद बिछुड़े ही नहीं
अब भी जीते है हम अपने अपने घरों में
हमारा वही
बचपन का घर .....
बचपन रह रह कर याद आता है।
ReplyDeletebahut sundar!!
ReplyDeleteभावमय रचना। शुभकामनायें।
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