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Sunday, April 3, 2011

माँ ..

अचानक अचकचा कर
ढेर होने से पहिले उसको देखा
वो पेड़ की भाँति
तटस्थ
ताक रही थी
अपने शरीर के उस हिस्से को
जो पीला हुआ झरने को है
पतियों की मानिंद
माँ ...मुझे हरा करती रही है
हमेशा खिलाती रही है फूल मेरे लिए
लकदक हो फलों से
मुझमे ताजगी और नयी उरझा भरती रही है 
आज .. अपनी बीमारी में भी
विशवास और दर्द को सहने का
ये बेमिसाल होंसले का फल
दे रही है मुझे .......








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