कुछ देर सुस्ताये है
कुछ देर ठहर सोचा है
वही कुछ देर का समय
इतनी दूर ले आया है
जहा में खुद भौचक खड़ा हूँ
कितनी मुस्कराहटों का कारन बना हूँ
कितनी ही बार रोया हूँ
कितने ही सपने देखे है
खुद से लड़ा हूँ
और आज यहाँ पहुँच उन्ही आसुवों से नहाया हूँ
अगर वो कुछ देर का समय
वो सुस्ताना ,वो सोचना
नहीं होता तो दोस्त
में नहीं कोई और यहाँ सायद होता ....
विजेता /
विजेता अन्ततः कोई नहीं होता है, अकेला हो जाना विजय नहीं।
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