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Tuesday, April 5, 2011

विजेता

कुछ देर सुस्ताये है 
कुछ देर ठहर सोचा है 
वही कुछ देर का समय 
इतनी  दूर ले आया है 
जहा में खुद भौचक खड़ा हूँ 
कितनी मुस्कराहटों का कारन बना हूँ 
कितनी ही बार रोया हूँ 
कितने ही सपने देखे है 
खुद से लड़ा हूँ 
और आज यहाँ पहुँच उन्ही आसुवों से नहाया हूँ 
अगर वो कुछ देर का समय 
वो सुस्ताना ,वो सोचना 
नहीं होता तो दोस्त 
में नहीं कोई और यहाँ सायद होता ....
विजेता  /

1 comment:

  1. विजेता अन्ततः कोई नहीं होता है, अकेला हो जाना विजय नहीं।

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