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Sunday, April 17, 2011

ये संगत......

कुछ कहना क्यों पड़े 
शब्दों को फैक कर व्यर्थ 
रिश्ते में शोर क्यों करना
चुप्पी से वो समझ लेती है 
अपनी चुप में समझ लेता हूँ 
उसकी समझ 
बरसों से साथ है 
मुस्कुराते मौन में 
चुपचाप 
करते प्यार 
शब्दों को देकर विराम 
उनके अर्थो को मांजते 
और रचते नए अर्थ 
विसंगतियों की इस दुनिया 
है अद्भुत मेरी और उसकी 
ये संगत.......

1 comment:

  1. मुस्कराता मौन, प्रभाव व्यापक है।

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