Search This Blog

Saturday, April 30, 2011

याद दिलाती है

आकाश 
जैसे तंदूर की भट्टी हो 
और धरती जैसे उपसती तंदूर  की रोटी 
और मैं उपसी रोटी पे सिक कर काला हुआ एक धब्बा 
सूरज हंसता है ठहाके  लगा लगा 
पूछती है आंसू ..मेरे ....हरी पतियाँ 
और जब मैं रोना बंद करता हूँ 
याद दिलाती है 
मुझे पेड़ ......

3 comments:

  1. gahan bhavon ko ukerti kavita .sundar prastuti hetu badhai swikar karen .

    ReplyDelete
  2. बेहद प्रभावशाली शब्दांकन, बधाई

    ReplyDelete