कुछ पता नहीं क्या हुआ है आज
आज मन कुंद है
आसपास अपने सब लगता बेकार है
पूछता है बार बार अंतस
क्या किया तुमने इतने बरस
क्यों जिए यूँ फजूल
किसे किया प्यार
कौन है आज तुम्हारे साथ
क्यासीखा तुमने
किस क्षेत्र है तुम्हारा नाम
कुहासा निराशा का बढ़ता है
छिपने लगती है काया
वजूद आज आकोरोषित मुद्रा में
कर गया है इतने सवाल
उत्तर नहीं है मेरे पास
और ऐसे में तुम आई हो
मुस्कुराती मुझे सहलाती
लौटाती मुझे पुनः
मेरा आकार .....
आँख बन्द कर उच्छ्वास भरे, उत्साह सृजन हो जायेगा।
ReplyDeleteबेहतरीन शब्दांकन, बधाई
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