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Monday, May 9, 2011

खिलोने ---उनके हाथ

बहुत सी चीज़ें 
उपकरण बहुतेरे 
कितने ही लबादे  ओढ़ 
घने कोहरे में 
वो मिला किसी चीज़ की तरह 
मन मोहा उसने 
अपने हठ को पूरा करने 
और खिलोनों को जैसे पाया था अब तक 
उसे भी हमने पा ही लिया 
मगर ये क्या देखा हमने 
चौंक गए जब हम खुद 
उसके हाथ खिलौना बन रह गए 
अब जब वो भरता  है चाबी 
चलते है हम ..रुकते है 
वो हमारा हठ ..वो हमारा रूतबा 
सब कुछ ना जाने क्या हुआ !!
इतना सब हुआ और अब तो हालात ये है 
-  चाहते है वो खेले मुझसे ही 
और जब नहीं खेलता वो हमसे 
टूट जाते है वो सब खिलोने मेरे 
जिनसे हम खेले थे कभी ......
फिर भी खुश है की हम है 
खिलोने ---उनके हाथ !!!


3 comments:

  1. विचारणीय रचना। आभार।

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  2. आज बहुत दिनों बाद आना हुआ...वही आनन्द मिला. आभार.

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