परछाई का आकार होता है
जानते है परछाई देख
किसकी है ये छाया
जो कही भी आ जा सकती है
अपने आकार को किसी के भी अनुरूप ढाल कर
बेरोकटोक आगे बढ़ जाती है
परछाई के लिए कोई रुकावट नहीं
परछाई को कोई दुःख या सुख नहीं
क्रोध या उन्माद भी नहीं
वो हर हाल परछाई है
वो सिर्फ आकार लेती है भाव नहीं
हम भी
परछाई है
मगर हममे कितना अहम् .....कितना मैं !!
जो हमसे भी बड़ा हो जाता है बाज वक़्त
शायद हम समझें कभी
परछाई को
...फिर खुद को
परछाई को
...फिर खुद को
देख अपनी परछाई
समझ सके....
शायद ...उसको ///
छाया, साया और हम।
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