मन की बांतें जान न पाए
कब, कैसे, क्यों हमने -उसको चाह लिया
ये बात भी हम न जान पाए
आज बहुत दिन से जब उसको नहीं देखा
तो अपनी हर हरक़त में उसको देख
चोंके और ठहर कर सोचा
खुद के ख्वाबो में ख्यालो में उसको ही देखा
तब अपने मन को जान पाए
अब कोई कैसे करे विश्वास
कि हम खुद को भी न जान पाए
मछली को नदी में जिस दिन नहीं पाया
लहरों की हरक़त नदी जाने
आज क्या उसने खोया
अब समझा बड़ी देर बाद
खोने पर ही अहसास होता है शायद
क्या हमने पाया था कभी ......
यही दर्शन है।
ReplyDeleteबेहतरीन कविता, हृदयस्पर्शी बधाई
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