वो
उन्मुक्त करती है
शब्दों को
शब्दों को
देती है पूर्ण आकार
जैसे चित्र गुजरता है
आँखों के सामने से
आँखों के सामने से
कविता मैं सुनता हूँ ..देखता हूँ
और जिधर वो ले जाती है
उसके साथ चल पड़ता हूँ
उसके साथ चल पड़ता हूँ
साथ उसका
जहा खतम होता है
उस जगह वो मुझे
अकेला करके नहीं जाती
मुझमे हो जाती है
फिर
झांकती रहती है
मुझमे से
झांकती रहती है
मुझमे से
हमेशा .....
कविता हमेशा आपके अन्दर बसी रहे इन्ही शुभकामनाओ के साथ बधाई
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