कई बार वास्तविकताओं को नकार कर तुमसे किया है प्यार
जानते रहे है ये ठीक नहीं ,मगर तुम्हारी इच्छाओं को देख
हर गलत बात को सही मानकर तुम्हारा साथ दिया है
आज एक ऐसे मुहाने पर आ खड़े हैं
जहा-- गलतियां गिरेबान पकड़ करती हैं सवाल
प्यार ..प्यार ..प्यार- मैं इतना हुआ बेजार
अब जिसके लिये किया ये सब
वही मुझे कोसता है
उसका भी नहीं रहा मैं -- प्यार
इतना चाहा होता खुद को ...काश
खुद से किया होता प्यार
अपने मूल्यों - संस्कारों
-अपने वजूद को नकार .......आज हुए बेहाल
करते है कविता .....या रोते है रोना-- गए वक्तो का
बहरहाल .......हम अपनी भाषा मैं अपनी भाषा को सुनाते है दुखड़ा
शब्द दर शब्द ......हिचकियाँ कम होती है ....आँखें होती है साफ़ .....
दिखता है नया रास्ता .....कोहरा कितना घना था ....
कविता पूरी होते होते कितना साफ़ हुआ रास्ता !!!
दिखता है नया रास्ता .....कोहरा कितना घना था ....
कविता पूरी होते होते कितना साफ़ हुआ रास्ता !!!
सुन्दर रचना।
ReplyDeleteहर पथ पर उलझन हो, तो चिन्तन सतत हो जाता है।
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