चिड़िया आज बहुत दिनों बाद तेरी याद आई
जब देखा मैंने सुबह सुबह पेड़ को अकेला
और नहीं सुना तुम्हारा मधुर गान
कुछ देर अचकचाया ,सोच मैं पडा
और दिखी मुझे बिल्ली पेड़ को ताकती
सिहरते पत्तों ने मुझे सब समझाया
मैंने बिल्ली तुझे इतना दूध पिलाया
फिर भी तू ..........और सुबह से
न जाने कितने झुंड के झुंड चिड़िया के आये है और आते जा रहें है
कितने ही पत्ते पेड़ से झरे है और झरते ही जा रहे है
कोई मुझे कुछ कहता नहीं
बिल्ली भी दरवाजे पे भूखी खड़ी
बार बार पंजो से दरवाजे को नोचती है
वो भी कुछ नहीं कहती
मगर फिर भी मैं सुन रहा हूँ
उन सबकी आवाजें ..सबकी शिकायते
मगर फिर भी मैं सुन रहा हूँ
उन सबकी आवाजें ..सबकी शिकायते
सोचता हुआ चुपचाप
पूछता अब कविता से
कैसे चिड़िया फिर आये मेरे द्वार
झूमे पत्तें फिर
और बिल्ली भी रहे न भूखी .....
बेह्द मार्मिक और गहन अभिव्यक्ति।
ReplyDeleteकविता के भाव बेहद सुन्दर, बधाई
ReplyDeleteमार्मिक अभिव्यक्ति।
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