बहुत संघर्षो के बाद
आज आया है वो दिन
जब आई है फिर ठंडी बयार
मुक्ति मिली है उस एक अजीब यात्रा से
जो निचोड़ लेती थी
सारी उर्जा
थका देती थी
बदन के रोये रोये में
भर देती थी दर्द अपार
मैं रोज चढ़ती थी एवरेस्ट पहाड़
और झरने की माफिक पहाड़ो से टकरा टकरा
होकर निढाल आ पड़ती थी घर
एक रात के पड़ाव के बाद फिर चल पड़ती थी
अनवरत यात्रा का वो दुर्दिन अनुभव
कितना कुछ सीखा गया
जीवन को दे गया नया साहस नया विश्वास
और आज मिली मुक्ति तो
बहुत ख़ुशी के साथ
बहुत पीड़ा हुई मुझे आज
छोड़ते हुए उन लोगो का साथ
याद आये मुझे फिर
मुझे मेरी माँ पापा और बड़ी मम्मी
जिनको खोया है मेने इस संघर्ष के दौरान
और याद आये वो दोस्त जो मुझे मिले ऐसे
जिनका साथ स्नेह मिलता रहेगा
मुझे अब जीवन के हर घाट
सच ....संघर्ष से तप कर ही हासिल होता है घर
और ख़ुशी मिलती है अपार
बालोतरा तुम याद आओगे मुझे
मेरी थकानो में नहीं
मेरी मुस्कानों में रहोगे तुम मेरे साथ
गयी थी जब अकेली गयी थी
और आज जब लौटी हूँ अपने घर तो
मैं ले आई कितनो को अपने साथ//
(पत्नी मंजू के बालोतरा से पुनः जोधपुर आने पर उनकी जुबान से लिखी ये कविता उन्हें भैट )
(पत्नी मंजू के बालोतरा से पुनः जोधपुर आने पर उनकी जुबान से लिखी ये कविता उन्हें भैट )
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