शाम आते आते
थकी मांदी दोपहर
तेजी से बिखरे हुए सपने
अपने मन में यू डालती है
जैसे कोई गोरी अपने बिखरे बालों को
सुंदर से जुड़े में बांधती है
सुदर जुड़े में सिसकते और दम घुटते बाल
और मन में कुलबुलाते सपने
शाम ,रात और सुबह
माँ -बाउजी,साजन और बच्चे
कभी नहीं जान पाते
दोपहर और गौरी का दर्द
हमेशा एक राज है ......धडकता हुआ प्यार में ..///
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