पहाड़ से ऊँचा होते
अपने कद पर इतराए
पहाड़ से उतर
अपने बोने होने के अहसास पर शर्माए
हंसा पहाड़
अरे घुमक्कड़
तुम कितना घूमे
मैं यही था ...यही रहूंगा
मैं तो अपने थिर होने पर न तो शर्माता ..न ही इतराता
जो मिला मुझे उसको संभालता
अपने पर गर्व करता
दूजो को उनकी जगह देता
और तुम जीत कर भी मुझको
यूँ सोच सोच ..हार जाते हो !!
very nice post .
ReplyDeleteACHA LAGA PADH KAR...
ReplyDeleteJAI HIND JAI BHARAT