कुछ बात ऐसी हुई है शायद
जिसे होना नहीं चाहिए था
कई बार प्रेम में अति होती है
कह दी जाती है कुछ बाते
सुन ली भी जाती है
मगर ,क्यों फिर प्रेमी प्रेमिका
उससे उभर नहीं पाते
नदी जानती है
जब हुई थी बारिश
जिन बूंदों को चाहा था
जिन बूंदों ने चाहा था
हमेशा का साथ
वे बह गयी बाढ़ में
उनसे बिछुड़ने का दुःख नदी को भी है
उन बूंदों को भी
मगर बूंदे कभी साथ नहीं छोडती नदी का
नदी भी हमेशा बहती है उनको लिए साथ
तो क्यों फिर रूठे तुम
उस प्रेम की घनी बारिश में कही मेरी उस बात से
अब छोडो भी ...आओ
हम फिर बहे
प्रेम सलिला में ...
तुम आ रहे हो ना ??
जिसे होना नहीं चाहिए था
कई बार प्रेम में अति होती है
कह दी जाती है कुछ बाते
सुन ली भी जाती है
मगर ,क्यों फिर प्रेमी प्रेमिका
उससे उभर नहीं पाते
नदी जानती है
जब हुई थी बारिश
जिन बूंदों को चाहा था
जिन बूंदों ने चाहा था
हमेशा का साथ
वे बह गयी बाढ़ में
उनसे बिछुड़ने का दुःख नदी को भी है
उन बूंदों को भी
मगर बूंदे कभी साथ नहीं छोडती नदी का
नदी भी हमेशा बहती है उनको लिए साथ
तो क्यों फिर रूठे तुम
उस प्रेम की घनी बारिश में कही मेरी उस बात से
अब छोडो भी ...आओ
हम फिर बहे
प्रेम सलिला में ...
तुम आ रहे हो ना ??
kabhi na kbhi ye intjaar falega,,
ReplyDeletepatjhar ke mosam me bhi fool khilega.......
bahut hi sundar rachna likhi hai ,,,
jai hind jai bharat
.
ReplyDeleteआदरणीय राकेश जी
घणी खम्मा !
सादर सस्नेहाभिवादन !
...आओ
हम फिर बहे
प्रेम सलिला में ...
वाह वाऽऽऽह… !
क्या बात है
बहुत अच्छी प्रेम कविता लिखी है आपने …
हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं !
-राजेन्द्र स्वर्णकार