गहरी वेदना की अनुभूति
मौका देती है शरीर को ओढ़
उसके भीतर लम्बे समय तक
ऊँघने का
वह ऊंघ
फिर पार्श्व संगीत
की तरह बजती रहती है
ख़ुशी ,उदासी
सब बेमानी करती
हमारे हर पल को
मौन से भरती
प्राकृत को
करती मुखरित
हमें सतत से जोडती है......
अच्छी विचारणीय रचना
ReplyDeleteमौन में ही तो सृजन है |
ReplyDeleteसुन्दर रचना |