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Friday, August 19, 2011

वह ऊंघ

गहरी वेदना की अनुभूति 
मौका देती है शरीर को ओढ़ 
उसके भीतर लम्बे समय तक 
ऊँघने का 
 वह ऊंघ
फिर पार्श्व संगीत 
 की  तरह बजती रहती है
ख़ुशी ,उदासी 
सब  बेमानी करती 
 हमारे हर पल को
मौन से भरती
 प्राकृत को
करती मुखरित
   हमें सतत से जोडती है......


2 comments:

  1. अच्छी विचारणीय रचना

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  2. मौन में ही तो सृजन है |
    सुन्दर रचना |

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