सुरंग के बीच
घोर अँधेरे में चमगादड़ो के
पंखो से आती हवा
उनकी आँखों से
रौशनी आती
डर फुदक कर चिड़िया की माफिक
आगे बढ़ता है हमारे पावँ
समय जान गया है
वो अब सहम कर..नहीं
अपनी शिला पर
हर पल को लिखेगा अब
कोई आया है
बरसों के इस अँधेरे को
उजालो के
अर्थ दे जाएगा
दबी हैसुरंगे जो
पहाडो के नीचे
वे मांगेगी अब अपना हक
ये सुरंग अब शहरों को नही
जोड़ेगी दिलों को....
इतनी सी अभिलाषा सुरंग की
कई महल तोड़ गयी है
दिए है तोड़..कई रजवाड़े ......
No comments:
Post a Comment