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Friday, August 26, 2011

वो जो है अभी

वो जो है अभी 
  शरीर  भूल गया वो
 आत्मा हो गया
देह से खुद की निकल
 लोगो को अपनी देह  
  से निकाल नयी पहचान दे गया
  कौन सोचे उसकी जो सबकी सोच  रहा 
पेड़ के नीचे मंदिर के  प्रांगन 
मिल गयी उसको कैसी निधि 
भूख प्यास नहीं उसे 
 अपना पराया नहीं

  राजनीति से परे
 समय  को खोये मूल्यों से मिला गया
  अब  हम नारों से बाहिर निकल
उसकी खुसबू से सराबोर हो
 नयी दुनिया  बनायेंगे 
  जो अब भी कुछ ना बदल  पाए 
   तो शायद फिर कभी  ना कोई आये 
  जो यूँ हमारे  दर्द के लिए 

   खुद का दर्द भूल
  हमें ऐसी  खुशबू  दे पाए........

2 comments:

  1. जो अब भी कुछ ना बदल पाए
    तो शायद फिर कभी ना कोई आये
    जो यूँ हमारे दर्द के लिए
    खूबसूरत संकेत....
    सार्थक आवाहन
    सादर...

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  2. अब हम नारों से बाहिर निकल
    उसकी खुसबू से सराबोर हो
    नयी दुनिया बनायेंगे
    जो अब भी कुछ ना बदल पाए
    तो शायद फिर कभी ना कोई आये

    Sahmat.

    ReplyDelete