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Saturday, November 12, 2011

दुनिया नयी होती जाती है

धुंवा धुंवा सा होता जाता है
आकार आगे चलता है
पीछे न जाने कैसी कालिख छोड़ जाता है
दुनिया नयी होती जाती है
आग में जो गया
वो फिर कहा आता है
मगर मोह छूटता नहीं
कहते है की जो जाता है
वही आता है
पुराने कुवे के भीतर अब भी
वो कमेड़ी गूं गूं  गाती हुई कहती है 
 अभी भी इस कुवे में पानी है
कुवे की सीढियां टूट गयी है
पानी पर चिड़िया की पाँखे तैरती है
सुनसान गहराई में पानी प्रेत हो जाता है
और धुंवे में गायब हो जाता है समय
न जाने कितने शहर कितने गावं
कितनी आबादी जीवाश्म में बदल
पत्थर हो जाती है
जिससे खेला हूँ में अपने बचपन में
और मेरे धुंवे में गायब होजाने के बाद
खेलेगा मेरा बेटा
यादो की हलकी झाई में लिपटे
नए समय के कपड़ो को पहिन
गायब होते लोगो की याद में
और रंगीन और कमसिन
और सुंदर होती जायेगी ये दुनिया 





















4 comments:

  1. behad bhavpurn rachna likhi hai sir ji...
    jai hind jai bharat

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  2. और सुंदर होती जायेगी ये दुनिया
    सुंदर!

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  3. पुराना जाता है और नया आता है!

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  4. यही तो शाश्वत सत्य है…………
    आना जाना यहाँ निरन्तर
    कोई ना परमानेन्ट
    तू भज ले राम नाम अर्जेंट

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