सड़कें भरी है फुटपाथ समानो से लदे है
दुकाने उचक कर आ गयी है बाहिर
जेबें शर्मा कर अंदर हो गयी है
ढूंढे अब क्या हाथ पसीने से भीगे है
बेटा कोई जिद न करदे ये अंदेशा
हर पल मुझको कांच दिखाता है
मजबूरी में जीनेका मज़ा आने लगा है
फकीरी में माशुका का साथ नही
मगर विछोह में हर पल है इंतिज़ार
जंगल में छन छन के आती धूप
पत्तों को हरा और मुझे काला कर जाती है
तना हूँ इतिहास बनूंगा कालातीत हो जाऊँगा
अभी तो जितने थपेड़े है सह लू
फिर दर्द खुद अपनी कराह में पुकारेगा मुझे
नहीं तुम मत आना फिर मेरी जिंदगी
बिछुड़ कर मिलाहूँ फिर में खुदसे ..
दुकाने उचक कर आ गयी है बाहिर
जेबें शर्मा कर अंदर हो गयी है
ढूंढे अब क्या हाथ पसीने से भीगे है
बेटा कोई जिद न करदे ये अंदेशा
हर पल मुझको कांच दिखाता है
मजबूरी में जीनेका मज़ा आने लगा है
फकीरी में माशुका का साथ नही
मगर विछोह में हर पल है इंतिज़ार
जंगल में छन छन के आती धूप
पत्तों को हरा और मुझे काला कर जाती है
तना हूँ इतिहास बनूंगा कालातीत हो जाऊँगा
अभी तो जितने थपेड़े है सह लू
फिर दर्द खुद अपनी कराह में पुकारेगा मुझे
नहीं तुम मत आना फिर मेरी जिंदगी
बिछुड़ कर मिलाहूँ फिर में खुदसे ..
दुकाने उचक कर आ गयी है बाहिर
ReplyDeleteजेबें शर्मा कर अंदर हो गयी है
बहुत खूब... बढ़िया रचना..
बधाइयां.