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Thursday, January 12, 2012

भर गया मुझमे वो पानी

कोहरा आकार ले रहा है
आकार  वजूद खो रहे है
पानी कभी बर्फ ,कभी भाप
कभी नदी कभी सागर कभी आकाश
कभी मानवीय आकार में
रंगहीन मगर सारे रंग तय करता है
पानी की जुबान नहीं कोई मगर
बिन पानी शब्दों में पथ्थर बोलता है
आंखे जो खो दे पानी
जीवन में छा जाता  अँधेरा
तेरे और मेरे बीच ये पानी ही है
जो प्यार बन बोलता है
तू मुझमे और में तुझमे
कई रूपों में पानी बन ही डोलता है
छट गया है कोहरा
भर गया मुझमे वो पानी
जो गीत बन मुझको गाता है
ये कोहरा हमेशा मुझमे यू तुझको
फिर फिर छोड़ता है .......

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