तन गयी है बात
जैसे तन जाती है बंदूकें
बात के एक छोर वो है
बात के दूजे छोर भी वो है
में दोनों छोर से दूर
तनती हुई बात का साक्षी बना हूँ
आधी रात के इस अँधेरे
बदल गया हूँ रस्सी में
जिसका तनाव मुझे दोनों छोर से खींचे जा रहा है
अब बात के दोनों छोर मैं हूँ
मेरी देह उस तनाव में गुंथती जाती है
वो दोनों अब सिर्फ साक्षी है
और बात -- किसी और ठिकाने को तलाशने
निकल पड़ी है ..........
जैसे तन जाती है बंदूकें
बात के एक छोर वो है
बात के दूजे छोर भी वो है
में दोनों छोर से दूर
तनती हुई बात का साक्षी बना हूँ
आधी रात के इस अँधेरे
बदल गया हूँ रस्सी में
जिसका तनाव मुझे दोनों छोर से खींचे जा रहा है
अब बात के दोनों छोर मैं हूँ
मेरी देह उस तनाव में गुंथती जाती है
वो दोनों अब सिर्फ साक्षी है
और बात -- किसी और ठिकाने को तलाशने
निकल पड़ी है ..........
Bahut sundar abhivyakti hai bhaavnaao ki sir.. bahut sundar rachna..
ReplyDeletekabhi samay mile to mere blog par bhi aaiyega.. aapka swaagat hai..
palchhin-aditya.blogspot.com