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Friday, January 13, 2012

बदल गया हूँ रस्सी में

तन गयी है बात
जैसे तन जाती है बंदूकें
बात के एक छोर वो है
बात के दूजे छोर भी वो है
में दोनों छोर से दूर
तनती हुई बात का साक्षी बना हूँ
आधी रात के इस अँधेरे
बदल गया  हूँ रस्सी में
जिसका तनाव मुझे दोनों छोर से खींचे जा रहा है
अब बात के दोनों छोर  मैं  हूँ
 मेरी देह उस तनाव में गुंथती जाती है
वो दोनों अब सिर्फ साक्षी है
 और बात -- किसी और ठिकाने को तलाशने
निकल पड़ी है ..........

1 comment:

  1. Bahut sundar abhivyakti hai bhaavnaao ki sir.. bahut sundar rachna..

    kabhi samay mile to mere blog par bhi aaiyega.. aapka swaagat hai..
    palchhin-aditya.blogspot.com

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