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Friday, February 17, 2012

...बस साथ हूँ

उसके पैरो की आहट में जो रुनझुन है
वो मेरे घर का मधुर संगीत है
उसके होने से   जो सरसराहट है
वो मेरा गीत है
ये  छत और फ़र्श का मकान  नहीं
उसके होने से मेरा घर है
इस घोर अंधियारे में
वो ही मेरा सूरज और चाँद है
संघर्षों  की राह में ,दर्द की कसैली कहार में
वो ही मेरे अधरों  की मुस्कान है
वो सब कुछ है ,अब किससे पूछूँ यारों
में उसका कौन हूँ ..
वो कैसे कहे
 एक ख्वाब हूँ ,ख्याल हूँ
..   याद हूँ ....बस साथ हूँ !!!

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