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Thursday, February 2, 2012

उसकी काया में

रात भर काटता रहा
शब्दों को लिख लिख
खुदको जोड़ता रहा
उस एक से
जो है मेरी आँखों की सीमाओं के पार
जानता हूँ
चुक जाते है शब्द
जब भी उसको सोचता हूँ
मगर फिर भी
अपनी इस टूटन की पुनरावृति से
न जाने कब बदल जाता हूँ
खुद से बाहिर निकल
उसकी काया में ....

1 comment:

  1. उसकी काया मे समाहित हमारी काया
    ईश्वर कितना बड़ा हैं आज जान पाया हूँ

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