अँधेरा अचानक नहीं आया था
धीरे धीरे तय हो रह था
उजाले को खा रहा था
सब मस्त थे अपनी मस्ती में
पीली पड़ती ,मद्धिम होती रौशनी चीखती रही
और आज जब अचानक अँधेरा छा गया है
सब समवेत स्वरों में रुदन कर रहे है
ऐसे में जलाती है दीप कविता
छट रहा है अँधेरा ..धीरे धीरे !!
धीरे धीरे तय हो रह था
उजाले को खा रहा था
सब मस्त थे अपनी मस्ती में
पीली पड़ती ,मद्धिम होती रौशनी चीखती रही
और आज जब अचानक अँधेरा छा गया है
सब समवेत स्वरों में रुदन कर रहे है
ऐसे में जलाती है दीप कविता
छट रहा है अँधेरा ..धीरे धीरे !!
सुन्दर कविता, भाव भरे शब्दों के साथ
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