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Wednesday, July 16, 2014

उग गए यू ही से पौधे की तरह

 प्रेम की बात कर कर के
लड़की वो भुलावा दे गयी मुझे
लगा मुझे की मुझे भी चाहती है एक लड़की
वो जो लेखिका भी है
आज अकेला इस सुनसान में
उग गए यू ही से पौधे की तरह
हवा के साथ होता बाय साय
चीख चीख कह रहा हूँ
मैंने कब चाहा होना
हरा ???
जो होना पड़ा मुझे यूँ पीला ........राकेश मूथा 

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