अँधेरे में खिलता हुआ उसका चेहरा
अकेली रातों को सुकून देता है
उजड़ी बगिया के बीच
एक खिला हुआ फूल
जैसे विश्वास दिला देता है की
उजाड़ है आज मगर
बहार आएगी यहाँ जल्दी ही
तुम्हारा चेहरा यो
मेरी याद में आकर
रोज जीवन्त रखता है
मेरा रोजमर्रा .....राकेश मूथा
अकेली रातों को सुकून देता है
उजड़ी बगिया के बीच
एक खिला हुआ फूल
जैसे विश्वास दिला देता है की
उजाड़ है आज मगर
बहार आएगी यहाँ जल्दी ही
तुम्हारा चेहरा यो
मेरी याद में आकर
रोज जीवन्त रखता है
मेरा रोजमर्रा .....राकेश मूथा
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