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Monday, January 30, 2012

खूब निभाया उसने

सब कुछ गणित के सूत्रों की तरह तयशुदा था 
पता था की गुना ,भाग ,जोड़ ..करके कई देर बाद 
कब खुदको घटा देना है इस समीकरण से 
प्रेम की प्रमेय का ये अद्भुत ज्ञान 
उसको अपनी विरासत में मिला था 
जिसे खूब निभाया उसने 
अद्भुत  गणित था उसका 
अपनी विरासत को वो नयी प्रमेय दे गयी 
जिसको पाय्थोगोरस भी सुलझा नहीं पाता
 अब जब सब कुछ झुलस गया है 
एक अद्भुत सन्नाटे में विद्यार्थी हस रहा है 
खुद पर ...आन्सुवों के समुंदर में डूबा उसका चेहरा 
अब शायद निकाले बाहिर
उसको उलझनों से ,अवसाद से 
हाँ ,शायद--- अब वो पहचान गया है 
कहाँ , क्या--किसे  समझने में उससे भूल हुई  थी ....

8 comments:

  1. बेहतरीन प्रस्‍तुति
    कल 01/02/2012 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्‍वागत है, कैसे कह दूं उसी शख्‍़स से नफ़रत है मुझे !

    धन्यवाद!

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  2. ;अजवाब रचना ... कनित का प्रयोग कविता मिएँ कम ही देखने को मिलता है .. नया बिम्ब ...

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  3. सुंदर अभिव्यक्ति॥ बधाई

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  4. बहुत खूब सर!


    सादर

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  5. बहुत खूब....
    शुभकामनाएँ.

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  6. "सब कुछ गणित के सूत्रों की तरह तयशुदा था
    पता था की गुना ,भाग ,जोड़ ..करके कई देर बाद
    कब खुदको घटा देना है इस समीकरण से
    प्रेम की प्रमेय का ये अद्भुत ज्ञान
    उसको अपनी विरासत में मिला था
    जिसे खूब निभाया उसने
    अद्भुत गणित था उसका
    अपनी विरासत को वो नयी प्रमेय दे गयी
    जिसको पाय्थोगोरस भी सुलझा नहीं पाता
    अब जब सब कुछ झुलस गया है
    एक अद्भुत सन्नाटे में विद्यार्थी हस रहा है !"

    कविता में गणित नहीं है...
    प्रेम में गणित है....!
    और ये होता है..
    और यहीं इसी दुनिया में होता है...
    लोग अपने प्रेम में तो सारे जोड़-घटाव करते हैं
    लेकिन जब पाना होता है किसी उसी तरह का प्रेम तो
    सारे समीकरण फेल हो जाते हैं...!!

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  7. //अब जब सब कुछ झुलस गया है
    एक अद्भुत सन्नाटे में विद्यार्थी हस रहा है
    //हाँ ,शायद--- अब वो पहचान गया है
    कहाँ , क्या--किसे समझने में उससे भूल हुई थी ....

    behtareen khayaal sir.. :)

    kabhi waqt mile to mere blog par bhi aaiyega.. apka swagat hai..

    palchhin-aditya.blogspot.com

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